शिक्षक महोदय डार्विन पढ़ा रहे थे,
अन्य प्राणियों से हम विकसित हैं,
कैसे, यह बता रहे थे.
मनुष्य के पास है भाषा उन्नत,
वह औजार बना सकता है,
सीधी रीढ़ कर चलता है,
भविष्य के विचार बना सकता है.
मुझ पशु प्रेमी की शंका जागी,
तर्कबुद्धि कुछ आगे भागी...
भाषा है संवाद का माध्यम,
पर ये बनी विवाद का साधन,
कटुता द्वेष प्रसार का माध्यम,
इतरों के उपहास का साधन.
औजार बनाने की क्षमता ने,
बना लिए इतने हथियार,
अनसुनी कर करुण पुकार,
मनुष्यता पर कर प्रहार,
कर सकते सृष्टि संहार.
भविष्य पर विचार की क्षमता ने,
उदार मन को भ्रष्ट किया,
औरों से छीन संचय की
क्षुद्र वृति को पुष्ट किया,
आनंद त्याग आज का,
कल की चिंता को संपुष्ट किया.
सीधी रीढ़ ही केवल एक
विकास का कारण दिखती है,
लाभ किंचित दिखे जहाँ,
तुरत वहां झुकती है.
हम हैं विकसित और हैं सभ्य,
नहीं मानता मेरा मन,
प्रार्थित है, शंका निवारण ,
उत्तर दें हे प्रज्ञजन!
अन्वेषक
बहुत बढ़िया पन्त जी. सही लिख रहे हैं ये विकास नहीं विनाश है.
ReplyDeleteकाश!! इसका कोई उत्तर होता...
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना.
नवसंवत २०६७ की हार्दिक शुभकामनाएं
प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteवसंत की शुभकामना सहित
आपका अन्वेषक.