Wednesday, June 10, 2009

सुमन का मातृत्व बोध - अन्वेषक का अनुरोध

आज आपको सुमन के बारे में बताना चाहता हूँ ! सुमन मेरे घर में कोई दो महीनों से सफाई का काम करती है। धीमी गति के समाचार की तरह - बस एक बेडरूम फ्लैट को पूरा एक घंटा लगता है। जैसे कोई कलाकार अपनी कुंची का प्रयोग करता है बस वैसे ही उसका झाडू और पोछा चलता है। शुरू में एक बार पूछा तो बोली पहले कभी काम नहीं किया - पर चार बच्चे हैं और उनकी जरूरतें बढ़ गई हैं - अच्छे स्कूल मैं भरती करने के लिए काम शुरू किया है। दो से आठ साल के बच्चे हैं और उनको ताले me बंद करके दो घरों में काम कराने आती है। सुनके मैं थोड़ा डर ही गया की कहीं कुछ गड़बड़ हुआ तो बेचारे बच्चे बाहर भी नहीं निकल पाए तो- पर कहने की हिम्मत नहीं हुई पर मातृत्व के इस भाव के प्रति सम्मान तो जागा ही और सुमन के लिए कुछ सहानुभूति भी।
आज सुमन ने आते ही एक सवाल किया - "भैय्या एक बात पूछूं आप मना तो नहीं करेंगे ?" उसके स्वर में बड़ी मनुहार थी और भरोसा भी कि मना नहीं होगी! मेरे हावभाव में शायद उदारता ज्यादा दिखाई पड़ती है जिसका कारण किन्चित मेरे माता- पिता का उदार स्वाभाव रहा है जिन्होंने तमाम आर्थिक कठिनाइयों के बाद भी हम बच्चों की और दूसरे लोग भी जो साथ रहे उनकी जरूरतों को बेझिझक पूरा किया। बचपन से इस माहौल में रहने से शायद थोड़ा असर मुझमे भी आगया है।खैर कहा कि पूछो तो बोली - " क्या आप मुझे एक हज़ार रु दे सकते हैं?" कारण पूछा तो पता लगा -बच्चे का स्कूल में दाखिला करना है और एक हजार रु काम पड़ रहे हैं।
मैंने पूछा - पक्का इसी काम के लिए चाहियें तो तुंरत भरा हुआ फॉर्म निकल कर दिखाया और उत्साह से बोली भैय्या देखो - अंग्रेजी स्कूल का है। मैंने पैसे दिए और उसका उत्साह और बच्चों की प्रगति के लिए उसकी ललक और प्रबल भाव देख कर मातृत्व के प्रति श्रद्धा और गहरा गई। अपनी माँ की भी याद आई जो अब सत्तर के लगभग आयु में अपनी तमाम शारीरिक कठिनाइयों के साथ जीवन संघर्ष में जुटी है। अपने बचपन की तमाम स्मृतियाँ उमड़ घुमड़ आयीं - सदा से कृशकाय और रोग ग्रस्त शरीर के बाद भी बच्चों की जरूरतों के प्रति उसका ध्यान कभी शिथिल नहीं हुआ. ।
अन्वेषक का मानना है की मातृत्वबोध इस धरती की जीवनी शक्ति है और माता इस विश्व की न केवल जननी बल्कि धारिणी और तारिणी भी हैं। मदर्स डे के प्रति पूर्ण सम्मान के भाव साथ भी अन्वेषक यह मानता है की मातृत्व को हमारे पश्चिम के बंधुओं की तरह एक दिन तक सीमित न रखकर हर पल उस भाव को जीने में ही हमारी धन्यता है।
इस सामाजिक संरचना और आज की जीवन शैली में जहाँ दूसरे के कंधे पर चदकर आगे बढ़ने की होड़ मची है और हर मनुष्य दुसरे को काटकर, बम से उडाकर अपने जीवन को सार्थक समझ रहा है, अन्वेषक ऐसा मानता है की मातृत्व के प्रति सच्चा सम्मान और भावना प्रकट करने का एक ही रास्ता है की हर मनुष्य अपने अन्दर के बालबोध को टटोले और उस मासूम बच्चे को जगाये जो अपनी माँ और हर दूसरे प्राणी के प्रति सहज प्रेम रखता है। यही बोध की भूमि माता है और मैं भूमि का पुत्र हूँ यह भाव हमारी धरती माँ के प्रति आज सब से ज्यादा सार्थक होगा। हमें मिलकर ही आतंक, द्वेष और प्रदूषण को इस धरती से समाप्त करने की पहल करनी होगी अन्यथा मनुष्यता और मातृत्व दोनों निरथर्क हो जायेंगे।

आज सुमन के मातृत्व बोध ने अन्वेषक के बालबोध को हिला कर जगा दिया और एक पुराना सपना फिर जाग आया जो अन्वेषक ने १९९१ में एक कविता के रूप में अपनी माँ को लिखा था। यह सपना आपके बालबोध को फिर से जगा सके इस आशा के साथ अन्वेषक इसे आज विश्व की तमाम माताओं को, पालकों को और उन सभी मित्रों को जो अपने और तमाम अनाथ बच्चों के लिए एक सुंदर जीवन जीवन का सपना देखते हैं - ह्रदय से समरपित करता हूँ -
आते हैं याद वो पल, माँ के ममता भरे आँचल के साए में, अठखेलियाँ करता बचपन,
कब बीत गया आ खडा हुआ यौवन।
याद हे वो होठों की थिरकन, सुनाते मुझे लोरी के बोल,
देखता था मैं कभी जब अधमुंदी आँखें खोल।
ममता भरा स्पर्श करता था मुझको अभय,
उस बीते योग को फिर पाने , ही आकुल मेरा ह्रदय।
सोचता हूँ चाह मेरी मूर्त होगी क्या कभी,
दौड़ता फिर से फिरूंगा तोड़कर बंधन सभी।

प्रेम सहित
आपका अपना अन्वेषक।

6 comments:

  1. aisa laga jaise ki kadambini (mukta prakashan) padh raha hoon.
    aapne bahut accha likha hai. Aap apne aap ko blogvani me register kar li jiye, usse aur log bhi aap ke vicharon ke baare me jaan sakenge. do char blog uttranchal par bhi hai, unme bhi aap apni pravishti bhej sakte hai.

    ReplyDelete
  2. If you go to dashboard and settings, u will see comments, in there u can disable the verification for comments, that makes it easier for people to comment on your writings.

    ReplyDelete
  3. हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में आपका हार्दिक स्वागत है......

    ReplyDelete
  4. Aap sab mitron ko hardik dhanyavad.
    Anveshan ki yatra chalati rahe iske liye aapki shubhechha prarthit hey.

    Aapka apna Anveshak!

    ReplyDelete